Sunday, August 15, 2010

स्वतंत्रता दिवस पर .........

माटी म्हारे देश की
मोहे खूब ही भावे
पानी-रोटी ,सत्तू
खुशबू पास बुलावे


अमरूदों का भीग़ा ठेला
पान-पुरी की चाट
पंजाबी ढावों के बाहर
पड़ी हुई कुछ खाट


बूढी दादी,नानी,अम्मा
करें जवानी याद
नये खिलौनों से खेल-खेल कर
दादा करते बात


और गली की उधम चौकड़ी
गरम समोसों की शाम
“फुरसतगंज” के चौराहों पर
उड़े पतंगे ले आस

और वहीं उसी किनारे
ले हाथों मे हाथ
सजकर बैठे गुड्डा-ग़ुडिया
कर तिरसठ को पार ॥

Wednesday, August 04, 2010

इति श्री चमचा कथा !!

बहुत दिनों के बात सोचा कि फिर से कुछ बकबास लिखा जाये। मेरे पढने वालो का मै शुक्रिया अदा करना चाहता हूँ कि कि वो मेरी बकबास समय निकाल कर पढ लेते हैं और कुछ ऐसे भी है जो इस बकबास पर टिप्पढी भी कर देते हैं । ऐसे सभी बेरोजगारों को मेरा दंडवत साष्टांग प्रणाम ।


चलिए ज्यादा वक्त न गुजारते हुए मै विषय पर आता हूँ । मैंने कुछ समय पहले घर में बनने वाले व्यंजनों में प्रयुक्त होने वाले सभी बर्तनों में से सबसे महत्वपूर्ण बर्तन को पुरस्कृत करने का विचार किया । सोचा था कि शायद इस तरह से मै उन पुराने पड़े बर्तनो में कुछ सकारात्मक उर्जा का संवहन कर पाऊंगा ।

यह एक कठिन कार्य था । कुकर ,कड़ाही , और तवा (जिस पर रोटी सेकी जाती है) सर्वाधिक कर्मठ थे । मुझे पता था कि यही वह लोग है जो प्रतिदिन अग्नि के प्रहार सक कर व्यंजनों का रसास्वादन कराते है । लेकिन कुकर की त्वचा के रंग और मुश्किले आ जाने या अधिक Pressure बढ जाने पर चिल्ला देना मुझे बिल्कुल पसंद नही आया। इस प्रकार वह पहले ही दौर में बाहर हो गया ।

“तवा” से मेरा कोई हार्दिक लगाव नहीं था । कारण ....उसमें मैंने Diversification बहुत कम देखा , वही गोल रोटी ,या बहुत ज्यादा कुछ अछ्छा करेगा ....तो पंराठे । यह किसी भी प्रकार से सर्वोत्तम के लायक तो नही ही था ।


अंतत: कड़ाही ....मै जानता था कि यही मेरे इनाम की हकदार है और शायद मै उसको पुरस्कृत कर भी देता ....यदि ठीक अतिंम स्थिति में पास रखा “चमचा” मुझे ध्यान नही दिलाता । कढ़ाही अल्मुनियम या लोहे की बनी होती है और यह कार्य सम्पादन के बाद सर्वाधिक समय तक गरम बनी रहती है यदि इसको या इसमें पड़े व्यंजनो को बिना “चमचों” की सहायता से उतारा गया तो यह आपको आघात पहुंचा सकती है । अधिकांश कर्मशीलों की यही दिक्कत है ।


अंतत: मेरा ध्यान चमचे पर गया । अहा ....धन्य !! वही वैसा ही चमचमाता हुआ,अति सुंदर । कितनी सौम्यता से कड़ाही और कुकर में जाता है और सबसे बेहतरीन पका पकाया पकवान उपलब्ध करा देता है।परिवार के अन्य सद्स्य जैसे चम्मच भी पूरी तत्परता से मालिक की सेवा करती है ।मै थाली के एक दम पास अपनी आखों के सामने सदैव चमचा रखता हूँ । यही सर्वोत्तम पाने का सबसे हकदार है । दुनिया के सारे चमचों को मेरा सत सत प्रणाम ।


वैधानिक चेतानवी :

1-मुझे (शायद आपको भी ) भारतीय व्यंजनो में छौंक लगा व्यंजन अति-प्रिय है , मेरे विचार में इस अतिरिक्त स्वाद का कारण यह भी हो सकता है कि यहां इस विधि का प्रयोग करने वाला, “चमचों” को भी अग्नि में तपाता है ।

2-किसी भी जीवित या मृत व्यक्ति से इस पूरे लेख का कोई सम्बन्ध प्रतीत हो तो मात्र संयोग ना समझे ......अगर हो सके तो क्षमा प्रदान कर दें ।

Tuesday, May 25, 2010

त्रिविचार

1.तथाकथित प्रबंधक

“लल्ला” को आजकल मैंनेजमेंट का भूत सबार हो गया । कहने लगे कि Gilli-Stick पर मैनेजमेंट का एक कोर्स करके आयेंगे । मैने पूछ दिया

-“Gilli-Stick” क्या है

जबाब मिला “ यू डांट नो !(मुझे अपराधीबोध कराते हुए) इट्स ए वंडरफुल स्ट्रेस रिलीविंग फिनोमिना ॥

-हो सकता है कि होता हो लेकिन फिलहाल मुझे नहीं पता ....मैने पूछ लिया

ओ.के !! फार दिस लेट मी ओपेन माई माई लैपी !! ---लल्ला बोले

लल्ला ने फटाफट अपना बैग खोला और थोड़ी ही देर में मेरे सामने 8 slides का एक प्रजेंटेशन आ गया ।

8 स्लाईड्स दिखाने और 35 मिनट मेरी सहनशक्ति की परीक्षा लेने के बाद “लल्ला” बोले

Actually it’s a Game and Rural Class of India calls it “गुल्ली-डंडा” ॥
************************************************************************************

2. प्रबंधक गुरू

भारत के प्रसिद्द प्रबंधन संस्थान के एक गुरू जी का सानिध्य प्राप्त हुआ। इसमें कोई संदेह नही कि यह काफी प्रेरणादायक और सीखने योग्य था । लेकिन कभी-2 कुछ बातें मुझ जैसे गांव-गंवारू को बहुत ही खराब लगती है यह मेरी कमजोरी भी हो सकती है ।

मिस्टर चट्टोपाध्याय ने शायद ही किसी इटालियन या अंग्रेज लेखक हो न पढा हो । शायद यही कारण है कि वह इतने प्रतिष्ठित गुरू हैं ।

वो बोले

--जानते हो पवन ! इंडिया और जापान में क्या अंतर है ?

ऐसे प्रश्नो को उत्तर “हाँ” में नही दिया जा सकता

मैने कहा “नहीं”

चटोपाध्याय जी बोले

“ जापान में जब बच्चे की मां चलना सिखाती है तो बच्चे के सामने खड़ी होती है । बच्चे को सदा यह अहसास रहता है “मां” तक पहुंचना उसका “लक्ष्य” है और जब बच्चा माँ तक पहुंच जाता है तो माँ फिर 4 कदम दूर खड़ी हो जाती है ।“

बच्चा गिरता संभलता फिर गिरता फिर संभलता एक दिन चलना सीख जाता है।

और एक हम भारतीय हैं जिनकी मां बच्चों को अपने पैरों पर खडा कर पीछे से पूरा support देती हैं बच्चे को जीवन भर यही लगता है कि वह तो गिरेगा ही नही क्योंकि मां बाप सहारा बने हुए हैं ।

इसीलिए एक हमारी Economy है और एक जापान की !!

गुरूजी शायद तमाम अंग्रेजों की किताबों के बीच में प्रेमचंद्र के हामिद को भूल गये जो भारत का बच्चा तमाम खिलौनो को छोड़्कर दादी के जलते हुए हाथो के लिए 3 पैसे का लोहे का चिमटा लेकर आता है ।

काश कि मैनेंजमेंट गुरूओं ने यह लाईनें भी पढी होती

“अब मियाँ हामिद का हाल सुनिए। अमीना उसकी आवाज़ सुनते ही दौड़ी और उसे गोद में उठा कर प्यार करने लगी। सहसा उसके हाथ में चिमटा देख कर वह चौंकी।

' यह चिमटा कहाँ था ?'

' मैंने मोल लिया है। '

' कै पैसे में ?'

' तीन पैसे दिये। '


अमीना ने छाती पीट ली। यह कैसा बेसमझ लड़का है कि दोपहर हुआ, कुछ खाया न पिया। लाया क्या, चिमटा ! सारे मेले में तुझे और कोई चीज़ न मिली, जो यह लोहे का चिमटा उठा लाया ?

हामिद ने अपराधी-भाव से कहा --- तुम्हारी उँगिलयाँ तवे से जल जाती थीं ; इसलिए मैंने उसे लिया।

बुढ़िया का क्रोध तुरंत स्नेह में बदल गया, और स्नेह भी वह नहीं, जो प्रगल्भ होता है और अपनी सारी कसक शब्दों में बिखेर देता है। यह मूक स्नेह था, ख़ूब ठोस, रस और स्वाद से भरा हुआ। बच्चे में कितना त्याग, कितना सद्भाव और कितना विवेक है !दूसरों को खिलौने लेते और मिठाई खाते देख कर इसका मन कितना ललचाया होगा ! इतना ज़ब्त इससे हुआ कैसे ? वहाँ भी इसे अपनी बुढ़िया दादी की याद बनी रही।

अमीना का मन गद्गद हो गया।

और अब एक बड़ी विचित्र बात हुई। हामिद के इस चिमटे से भी विचित्र। बच्चे हामिद ने बूढ़े हामिद का पार्ट खेला था। बुढ़िया अमीना बालिका अमीना बन गयी। वह रोने लगी। दामन फैला कर हामिद को दुआएँ देती जाती थी और आँसू की बड़ी-बड़ी बूँदें गिराती जाती थी। हामिद इसका रहस्य क्या समझता !”
*************************************************************************************************

3.Negotiation Skills

मेरा एक दोस्त दिल्ली के पालिका बाजार से सामान खरीद कर भी खुश रहता है । यह वह जगह है जहाँ आपको हमेशा लगेगा कि आपको ठग लिया गया ।

मै उसके साथ उस दिन टोपी खरीदने गया ।

दुकानदार बोला – 300 रूपये
वो बोला – 30 रूपये
दुकानदार हंस दिया ..बोला खरीदने आये हो या मजाक उड़ाने?
बो बोला – खरीदने
दुकानदार बोला तो फिर लाओ 30 रुपये !

टोपी तीस रूपये में खरीद ली गयी ।
ऐसे व्यक्ति को उसकी कंपनी के लोग कहते है 3 लाख रूपये का Negotiation Skill पर Course करके आओ ..

“सो दैट यू कैन इम्प्रूव इट !!"

Saturday, May 01, 2010

मूर्ख विज्ञान




एक विज्ञान की
किताब में
पढा ।

हम सब
एक ही हैं
गोरिल्ला चिप्पैंजी
ओरंग, उटांग
के वंशज ॥

उसमें यह
भी कहा गया
कि
काकेशायड
मंगोलायड
या निग्रोयाय़ड
एक ही हैं

कोई समान तो
कोई संकर बीजों की
उत्पति !!
यह तो प्रकृति है
कि कोई गोरा हो गया
तो कोई काला...

संवेदना ,भावुकता, ममता ,खुशी और आंसू
एक ही है ।

मूर्ख है ये सब विज्ञानी
पूर्व जन्म के पाप नहीं समझते ॥

Thursday, March 04, 2010

कुछ गलतफहमियां

कभी पेंसिल के छिलको को सरसों के तेल में डुबा कर रखा था यह सोचकर कि रबड़ बन जायेगी ।

दीदी के बालों में बांधने वाली रबड़ को पेंसिल के पीछे बांधकर, लिखे हुए को मिटाने की कोशिश की थी यह सोचकर कि लिखा हुआ बिल्कुल साफ हो जायेगा ।

किताबों के पन्नों के बीच में विद्या के पत्तो को भी रखा ,यह सोचकर कि अछ्छे नम्बर आयेंगे ।

कड़ी सर्दियों में ठंडे पानी से नहाकर , प्रात: स्मरण मंत्र बोलकर स्कूल गये । यह सोचकर कि आज गणित के मास्टर साहब को बुखार आ जायेगा ।

पहला पन्ना राम का, अगला पन्ना काम का ....जुलाई में आने वाली नईं कापियों को सुन्दर रखने की कोशिश की ,यह सोचकर कि विद्या देवी है ,खुश होगी ।


पैरामीशियम, अमीबा को तालाब के पानी से इकठ्ठा ,इंक की शीशी में डाला और उसमे हर दिन डाली सड़ी गली चीजें ,यह सोच कर कि कभी तो वो बड़े होंगे ।


कालेज की अगली सीट पर बैठने वाली उस लम्बे बालों वाली लड़्की को सोचकर लिख दी एक कविता ,यह सोचकर कि एक न एक दिन पीछे की सीट पर बैठने वाले उस बुद्दू से वह Impress होगी

कल उसको India के सबसे बेहतर Hospital लेकर गया , यह सोचा था कि वो कुछ और दिन मुझे देखकर मुस्कुरायेगी...........

Friday, February 12, 2010

पागल सपनें

मां
कमाती नहीं है
घर में पड़े हुए
जूठे बर्तनो को रगड़्ती है ....

पगली है सोचती है नये हो जायेंगे ॥

पिताजी
दिहाड़ी मजदूर है
कमाते हैं
घर में पड़े हुए
झूठे हो चुके बच्चो को रगड़्ते है .....

पागल हैं सोचते हैं उनसे बेहतर हो जायेंगे ॥

Sunday, January 31, 2010

दौडौ ! पीठ पर अपने अपने घरों का बोझ लेकर!!

1.

पिछला हफ्ता बहुत ही अलग था , 25 जनवरी को मुझे पता चला कि ग्रहण की कुछ दशाओं के कारण यह समय मेष राशि के जातकों के लिए ठीक नहीं है ।

26 जनवरी की सुबह ने मुझे भी मोहम्मद रफी और महेंद्र कपूर (क्रमश: हिन्दू,मुस्लिम) के गानों एवं “मिले सुर मेरा तुम्हारा” जैसी धुन ने देश-भक्ति की भावना से ओत-प्रोत कर दिया और मै एक बार फिर भारतीय होने पर गर्व करने ही वाला था कि बाल ठाकरे साहब ने मुझे पुनर्विचार करने पर मजबूर कर दिया । मुझे अभी तक यह समझ नहीं आ पा रहा कि कहीं उन्हे “उत्तर”- North शब्द से ही तो चिढ नहीं है और पकिस्तान तथा उत्तर भारतीय दोनो को इसलिए एक साथ “सामना” के द्वारा लपेटे में ले रहें हैं । उम्मीद है कि मै अभी तक इतना महत्वपूर्ण नहीं हुआ कि शिवसेना मेरे इस वक्तव्य से क्रोधित होकर मेरा पुतला फूंके ।अगर वह ऐसा करने को उत्सुक हैं तो मेरा शरीर किसी भी पुतले से न केवल बेहतर जल सकता है बल्कि मीडिया प्रचार के लिए भी बेहतर है ।


27 जनवरी से मुझे माइक्रोसाफ्ट की एक ट्रेनिंग में भाग लेना था । दिल्ली में कालिदीं कुंज और अपोलो हास्पिटल के सामने कुछ रेल की पटरियां है जो दिल्ली को आगरा ,मुंबई जैसे शहरों से जोड़्ती है।


एक और चित्र यह है कि यही रेळ की पटरियां इंसान को उसकी भूख मिटाने के साधन से विभाजित करती है। रेल की पटरियों के इस ओर मदनपुन खादर/जसोला विहार/कालिन्दी कुंज जैसी जगह है जहां निम्नवर्गीय ,मध्यमवर्गीय भारत बसता है जो हर रोज पटरियों के उस पार ओखला इंडस्ट्रियल एरिया में , उच्चवर्ग द्वारा स्थापित व्यवसायों में अपनी आजीविका ढूढने के लिए तेजी से आती रेलगाडियों के आगे दौड़ लगाता है ।



मैने नये होने के कारण एक को टोक दिया “ अरे अंकल ! मरोगे क्या? तुम्हे नहीं पता “राजधानी किस रफ्तार से आती है” ।

अधेड़ तपाक से बोला –

-किस “राजधानी” की रफ्तार से बचना है? ट्रेन वाली या शहर वाली ?
*************************************************************************************


2.

टाटा की लो-फ्लोर बसों में पहली बार बैठा , यह बाहर से देखने में काफी बेहतरीन है। उ.प्र सरकार नें नीले रंग से इसको अलग रखा इसके लिए मै बहनजी का शुक्रिया अदा करता हूँ । यधपि मुझे हर भारतीय की तरह नीले रंग से प्यार है लेकिन इसकी अधिकता इसके महत्व को कम करती जा रही थी । नोएडा के सेक्टर-37 से आप लगभग हर इलाके की बस ले सकते हैं ।

थोड़ा इंतजार के बाद हल्के हरे रंग की डिजिटल सिग्नल युक्त बस आ गई । कुछ छड़ के लिए तो लगा कि दरवाजा खुलते ही एक खूबसूरत सी बस-होस्टेज़ स्कार्फ और मिनी स्कर्ट में स्वागत करेगी , लेकिन यथार्थ कुछ ही समय में सामने आ गया।

ओ अकबर !!! कां कु जाबेगा ???? 37-38 साल के कंडक्टर ने हरियाणवी भाषा के सबसे सभ्य शब्दों का प्रयोग करते हुए पूछा ।

जी मुझे सरिता बिहार तक जाना है !

तो खुद से चढेगा या बाप्पू आबेगा चढ़ाने ........??

*************************************************************************************
3.


मुर्गे जब बाजार में बिकने जाते हैं तो मुर्गी-पालन करने वाला इंसान उन्हे एक जालीदार टोकरी में बंद करता है ।उस छोटी सी टोकरी में मुर्गे , एक दूसरे से लगभग चिपके हुए , अंश भर की जगह न होने के कारण सिर तक न घुमा सकने वाले वह सब अत्यंत शांत होते हैं । शायद उनको अपनी मौत का अंदाजा होता हो ।

सुबह-शाम पब्लिक ट्रांसपोर्ट से प्राइवेट कम्पनियों में काम पर आने जाने वाले लोगों में भी न जाने क्यूं ऐसी ही “निशब्ददता” पाने लगा हूँ ।


**************************************************************************************
4.


पहले
सिगरेट पिलाई
कश दिया ,
फिर
कुछ रगींन सा .....

फिर..
खूब सारा शोर मचा दिया कानों में

मुझे भी मजा आने लगा था ।
मेरे घर के कोने पर
अप्सरायें जो नाचने लगी थी ।

क्या पता था कि खोखला हो रहा हूँ ।।

मेरे जैसे
खूब तैयार किए
फिर जब अस्थमा, टी.बी, से लबरेज हुआ
तब कहा
अब “दौडौ ! पीठ पर अपने अपने घरों का बोझ लेकर !

वो तो एक माँ है
जो अभी भी,
अलमुनियम के टिफ़िन में
बूढी हुई सब्जियाँ
परोस देती है और
कहती है
बेटा ठीक से खाना !!!

Sunday, January 17, 2010

राजनीतिशास्त्र और सूचना प्रौद्दोगिकी: (गूगल-चीन विवाद)

विश्व के राजनीतिक पटल पर प्रौधोगिकी ,वह भी विशेष रूप से सूचना प्रौधोगिकी इतना विशिष्ट प्रभाव छोड़ेगी यह शायद समकालीन राजनीतिक चिंतको ने भी नहीं सोचा होगा । 1917 की रूस की क्रांति के पश्चान पूरा विश्व 2 भागों में विभाजित हो गया था ,एक ओर विश्व के उदारवादी चिंतक लोकतंत्र की अवधारणा और व्यक्तिगत स्वतंत्र्ता का समर्थन करते हुए बाजार की मुक्त स्पर्धा का समर्थन करते गये और उसका तत्कालीन प्रभाव वैश्वीकरण तथा सम्पूर्ण विश्व एक है,और सभी सकारात्मक रूप से स्वतंत्र है ... इस अवधारणा के रूप में सामने आया ।


वहीं दूसरी ओर मार्क्स के समर्थक साम्यवाद की अवस्था में ही लोकतंत्र की धारणा का समर्थन करते हैं । उनका कहना है कि वास्तविक लोकतंत्र तभी मिलता है जब साम्यवाद होगा इसके बिना लोकतंत्र छ्लावा मात्र है । यहां यह बताना आवश्यक है कि साम्यवस्था मार्क्स का स्वप्न मात्र है जिसमे समाज का हर व्यक्ति क्षमता के अनुसार कार्य करता है और आवश्यक्ता के अनुरूप पाता है। साम्यवस्था से ठीक पहले की अवस्था समाजवादी अवस्था या सर्वहारा की तानाशाही के नाम से जानी जाते है जिसमें राजा /सरकार के ही हाथों में राज्य के सभी संशाधन होते है। विचारधारा के समर्थकों का कहना है कि जनता इतनी सक्षम नहीं है कि वह दूरगामी साम्यवाद को समझ सके। यही कारण है कि कम्युनिष्ट विचारक व्यक्तिगत स्वतंत्रता को महत्व नहीं देते । वर्तमान में “चीन” प्रशासन शिक्षा, समाचार पत्र , विचारों की अभिव्यक्ति,आदि पर नियंत्रण रखता है परंतु सूचना प्रौधोगिकी के वर्तमान उत्कर्ष यथा गूगल,ब्लाग , Orkut, विकीपीडिया आदि धीरे धीरे चीन के कम्युनिष्ट स्वरूप को ही नही बल्कि वहां की संस्कृति को भी चुनौती देते जा रहे हैं ।


चीन में कार्यरत विश्व मानव अधिकार आयोग के कार्यकर्ताओं के ई-मेल लगातार हैक किये जा रहे हैं । इंटरनेट सर्च कंपनी गूगल ने कहा है कि वो चीन में अपना कामकाज समेट सकती है क्योंकि चीनी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के ईमेल कथित तौर पर हैक किये जा रहे हैं। व्यक्तिगत इंटरनेट Accounts को हैक कर प्राइवेसी (Privacy) को समाप्त किया जा चुका है । गूगल के चीनी भाषा के संस्करण का सर्च क्रम (Order) चीनी सरकार के मौन समर्थन में बदला जा चुका है ।

अमेरिकी इंटरनेट कंपनी गूगल के चीन सरकार के साथ चल रहे गंभीर विवाद से ओबामा प्रशासन ने चीन को औपचारिक रूप से डिमार्शे (राजनयिक नोट) सौंपने का निर्ण्य लिया । अमेरिकी प्रशासन का मानना है कि चीन को इंटरनेट की आजादी पर अपने विचारों को स्पष्ट करने की जरूरत है। दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल ने चीन पर वेबसाइट पर अभिव्यक्ति की आजादी (Freedom of Expression) को छीनने की कोशिशें करने का आरोप लगाया है और इस कारण चीन से अपना कारोबार समेटने की वॉर्निंग दी है।

वहीं दूसरी ओर चीन ने 2009 में गूगल पर कई आरोप लगाये जिसमें अश्लील साहित्य का प्रसार भी शामिल है । यह कुछ हद तक एक सही तथ्य भी है । इंटरनेट कई देशों की वर्तमान संस्कृति के लिए लगाता एक चुनौती बनता जा रहा है जिसमे गूगल सबसे महत्वपूर्ण है । चीन “संस्कृति के बचाब” का नाम लेकर समाजवाद बचाने के लिए व्यक्तिगत स्वतंत्रता की तिलांजली देना चाहता है, वहीं अमेरिका (वैश्वीकरण) प्रचारित कंपनिया अभिव्यक्ति की स्वतंत्र्ता के नाम पर बडे बाजार की ओर देख रही हैं ।

हम कहां है ?

भारत स्वतंत्रता के समय से ही अनु-19 के द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आजादी देता है । इसलिए वर्तमान में हमारे राजनैतिक विचारो के अनुसार भारत और वर्तमान विश्व की कंपनिया टकराव की स्थिति में नहीं है । यधपि आपातकाल तथा राष्ट्र हित में यह आजादी समाप्त कर दी जाते है परंतु इंटरनेट के युग में ऐसी स्थिति में कैसे निपटा जायेगा यह अभी भी एक मूक प्रश्न है ।


यहाँ यह उल्लेख भी आवश्यक है हमारे देश की संस्कृति को प्रदान की गई चुनौतियों का सामना अभी तक परिवार नामक संस्था बखूबी निभा रही है । राज्य या सरकार के स्थान पर माता-पिता तथा नैतिक शिक्षा द्वारा अच्छे ,बुरे की सीख से समाज अग्रसर हो रहा है । इस प्रकार भारत राजनैतिक और सामाजिक रूप से ही नहीं बल्कि भूमंडलीकरण के स्वरूप के कारण आर्थिक शक्ति बनता जा रहा है ।