Tuesday, May 08, 2007

बस एक याद

कहूँ शब्दों से क्या मै बस;
गा बैठा एक छंद ॥
दूर देश में बैठे बैठे बस
याद आया एक अनुबंध ॥

चिठ्ठी पाती न होती थी
न हो पाती थी जब बात
तभी Canteen के गुप्ता जी की
एक आती थी आवाज ॥

हम दौडे दौडे जाते थे
सुनके मम्मी की आवाज।
और Mess में गिरते थे आंसू
छलक पडते थे जज्बात ॥

कांच तोड के टोपो करना
और “खुद की मेहनत” बतलाना।
क्लास में बैठी अग्र लाइन पर
नजरें खूब घुमाना ॥

“फूल तोडना मना” लिखा हो
वहां से उसे तोड के लाना
और गुलाब की उस डंडी को;
Room-mate को पकडाना ॥

दिल के सर्किट खूब समझना
पर Tronix समझ ना आये
LAN, WAN समझा हमने तब
जब Share Folder आये

कलरव की मस्ती में
युवा मंच खूब हंसता था।
उस एक रंगमहल के आगे
सब कुछ लगता “सस्ता” था ॥

एक समोसे के छह हिस्से;
और जयसिंह की वो चाय;
और पैसे न देने पे;
पंडित की लगती “हाय”।

फिर एक दिन ऐसा आता था ;
जब खूब मार पडती थी
और होंठों पे हम सबके ;
एक हंसी रहती थी ;

क्योंकि लातों की मार के आगे
दिल का प्यार आ जाता था ॥
और दर्द ज्यादा होने पे हम सबको
गले लगाना आता था॥

आठ पचास पे सोके उठना ;
और नौ पे yes sir कहना ।
फिर दस की Class में
बची नींद को पूरी करना ॥

इस पर भी गर Teacher पकडे;
तो मुंह धोकर फिर से सोना
और नींद गर ना आये
तो फिर सपनों में खोना ॥

हंसी आती है आज जब
Boss Project Line बनाता
याद आता वो वक्त जब
CT का एक दिन रह जाता ,
और chapter सात देखकर
होश उडा करते थे ।
तब मेरे जैसे कई दोस्त ;
काजल पे मिला करते थे।

और डिनर के बाद शुरु करेंगे
हम ये सोचा करते थे
खाने के तुरंत बाद नही पढना होता है;
यूंही फिर 11 बजते थे ॥

फिर आंखो की नींद भगाने हम;
”चीची” के पास जाते थे ;
और फिर वहां उसी shed में
हम फोटोस्टेट रटते थे।

बस ऐसे ही उसी जगह से;
हम एक दिन बाबू बन बैठे।

कहने को तो बहुत है लेकिन
बक्त भागता जाता है
और खडे होकर हम सब पीछे ....तकते हैं
कभी आगे जाने वालों को .....कभी पीछे छूटने बालों को
बस एक लंबी सांस के बाद;
कलम ठहर जाती है
भीनी पलकें और मुस्कान
.......साथ साथ आती हैं ॥