Friday, September 25, 2009

एक कहानी .....सूखा समंदर

24 सित.2007 ,कहानी की शुरूवात यहीं से होती है । खूब जोरों का शोर ,डाइनिंग रूम ...दोस्तों से भरा हुआ ,कोल्ड ड्रिंक की खाली बोतलें तथा चाय की खाली हुई कपें। चंदर को शायद आज भी याद होगा कि 20-20 के उस क्रिकेट मैच का , भारत की जीत उस दिन सिर्फ भारत की जीत नहीं थी ।चंदर का पूरा ग्रुप जीता ,इतनी खुशी की सब एक दूसरे के गले मिले । कमल ,दीपक , आलम और रंजीत सब एक दूसरे के गले मिल गये ।


कालेज में होते तो माहौल “भारत माता” की जयकारों से गूंज गया होता ।आकाश में उड़ रहे बादलों की गर्जना को चुनौती दे दी गई होती । अनायास ही कुछ दोस्तों को गोद में उठा लिया गया होता और कुछ बेचारे GPL (बिना मतलब की मार) का शिकार बन गये होते ........लेकिन ये सभ्य लोगों की सोसाइटी थी ।चन्दर को कालेज से निकलकर JOB करने का सिर्फ 2 सालों का अनुभव था ....।


“यार यहां कुछ नही .....हम बाहर खुशिंया मनाते है।“ ...कमल ने सलाह दी ”हां यारो चलो” ” .....कहीं पटाखे मिले” ...तो मजा आ जाये ।
भारत की क्रिकॆट में जीत ....और वो भी पकिस्तान पर । भारतवासियों को इससे ज्यादा खुशी किसी में नही मिलती । और फिर मैच भी रोंमाच की हद था ।


दिल कितना कमजोर होता है ,आशा करता है कि जो सोचा है वही होगा । फिर जिंदगी की पारी शुरू होती है नया ओवर , नई अपेक्षायें, और बाजी मार लेने का जुनून ..कभी जिंदगी के इस कशमकश में गिल्लियां बिखर जाती है तो कभी स्थाइत्व और रनों से भरा हुआ ओवर मिल जाता है ..और अंत होता है हार या जीत से । सबको इंतजार होता है कि इस अंतिम ओवर का ......


शायद उन अपनो को भी ....जो कहते है कि क्रिकेट का यह मैच खत्म ना हो ...।

और फिर एक स्तव्ध सन्नाटा । सब स्टेडियम छोड़ जाते है रह जाते है तो सुलगते पटाखे ...खाली पडी सीटें और कुछ उड़्ते हुए गिद्द ,कौवे ...शायद इनको अंत में से कुछ लेने का हक विधाता ने लिखा है ।


और चंदर यही सोचता हुआ निकल पड़ा ..आज जीत हुई है और देश की इस जीत को उसने अपनी जिंदगी की जीत बना लेने का सपना देख लिया । यह दिन एक याद बन जाये बस ,एक खुशी की याद ....इसीलिए उसके हाथों ने अचानक मोबाइल में ऋचा का नम्बर ढूंढना शुरू कर दिया ।

......आगे की कहानी के लिए प्रतीक्षा