Wednesday, October 04, 2006

बुरा करो ,बुरा देखो और बुरा सोचो

gadhya

गांधी जंयती पर विशेष

“बुरा करो; बुरा सोचो; बुरा देखो”.... (लेखक-पवन कुमार “भ्रमर”)





अक्सर कुछ मानवीय विचारधारा के लोग सदा संदर्भित व्याख्या के साथ मुझसे मानविकी पर विचार करने के लिये चले आते हैं और मै भी विना किसी संकोच के उन सब को मानविकी के के बडे-2 लेक्च्रर देने लगता हूँ ।



आज का विषय था “बुराई करना”। यहाँ बुराई करने का तात्पर्य सिर्फ पीठ पीछे बुराई करने से है।भाषा में कमजोर लोगों को बताना चाहूंगा कि चुगली करना;ख़ुन्न्श निकालना;वचन बदलना (धातु की अनुपस्थिति में और उपयुक्त समय देखकर) भी इसी इसी विशिष्ट कला के प्रारूप हैं।



जिस समय ईश्वर प्रक्रति के जीव-जंतुओ का निर्माण कर रहा था;उसने प्राणियों की पाचन व्यवस्था का भी पूरा ध्यान रखा ।भैस ,गाय ,गधा ,उँट,बकरी को खाना खाने के बाद जिस प्रकार “जुगाली” करने की प्राकृतिक व्यवस्था दी गई;ठीक उसी प्रकार मनुष्यों को चुगली करने की। आप अक्सर खाने के बाद अपने आप को सहपाठी ,सह्चर,पडोसी,बॉस की बुराई करते हुए पाऎगें।



दरअसल “चुगली करना” भी अपने आप में अत्यंत आन्नददायक विषयवस्तु है।जिस प्रकार माँ अपने सफल बेटे को देखकर ,पिता अपने कर्तव्यों को पूर्ण होता देखकर,बहनें रक्षाबन्धन का उपहार देखकर,और अंग्रेज हिन्दुस्तान जैसे देशों को आजाद करके हार्दिक प्रसन्न होते हैं ,ठीक उसी प्रकार चुगलखोर अपनी चुगली भरी बातों में दूसरों को फंसाकर खुश होते हैं। “वास्तविकता में चुगलखोर वह है जो यह जानता है कि जिन सिद्धांतो का वह उपदेश दे रहा है वे झूठे हैं तथा जो लोग उसे सुन रहे हैं वो महामूर्ख हैं ।“ चुगली करने से प्राप्त हुए असीम आनन्द को वह व्यक्ति कभी नहीं प्राप्त कर सकता जिसने जिन्दगी में कभी भी चुगली न की हो ।

यहाँ मेरा “मन की भडास” और “चुगली” के अंतर को स्पष्ट करना बहुत आवश्यक हो गया है।वास्तव में “मन की भडास” निकालना अपने मन को शांत करने के लिये किया जाता है।इसमें कहीं न कहीं स्वार्थ अवश्य होता है परन्तु “चुगली” तो निश्वार्थ रूप से की जाती है ।हम दूसरो की बुराई उस समय भी कर सकते हैं जबकि हमें उससे कोई लाभ न हो रहा हो ।



वैसे तो “चुगली करना” ही पूर्णरूपेण प्राकृतिक क्रिया है परन्तु इनमे भी कुछ लोगो की चुगली करना” Basics सीखने जैसा है।बच्चा अपने भाई बहनो की चुगली ;किशोर का अपने अध्यापक की चुगली ,युवावस्था में “गर्लफ़्रेड युक्त” साथियो की “गर्लफ़्रेड रहित” साथियों द्वारा चुगली ;नौकरी मे बॉस की चुगली ; रिटायरमेंट के बाद पत्नी की चुगली ;और म्रत्यु समीप देखकर भगवान की चुगली करना एक अछ्छे चुगलखोर के सफल सफर में पडने वाली सीढियां है।

अब इससे आगे भी पढ्ने की या फिर सुनने की इछ्छा हो रही है तो बस इतना कहूंगा कि “अछ्छे अवसर बार -2 नही आते”।सुबह उठते ही डायरी में रूटीन वर्क बना लें कि आज किसकी,कम से कम कितने लोगों के सामने चुगली करनी है।आखिरकार आप भी तो इस “कलयुग” के काले भद्र पुरूष है और आपका भी परम कर्तव्य है कि आप भी “बुरा करो; बुरा सोचो; बुरा देखो”....को युक्तिसंगत बनायें.।

Saturday, August 05, 2006

मै और मेरा प्रधानमंत्री पद

जो लोग मुझे काफी करीब से जानते हैं ,(यधपि ऐसे मूर्ख काफी कम है),उन्हे यह पता है कि मै “नेता” बल्कि सही कहें तो “नेताजी” के नाम से अधिक प्रसिद्ध हूँ ।यह नाम मुझे उस समय तथाकथित मित्रों द्वारा मिला जो अक्सर मेरे “रंग दे बसंती” के रंगीन विचारों को सुन-सुन कर तँग आ गये थे।उन कमीने दोस्तों ने तो सजा दे दी परंतु मै चार वर्षों तक इस सोच मे पडा रहा कि आखिर मुझे यह नाम क्यूँ मिला ?
परंतु जिस प्रकार बुद्ध को सारनाथ मे ज्ञान प्राप्त हुआ ;महावीर स्वामी को कुशीनगर मे जीवन की सत्यता के बारे मे पता चला ;ठीक उसी प्रकार मुझे सरकारी कँपनी मेँ आते ही ज्ञान प्राप्त हो गया ।एक कहावत है कि पवन ,पानी और प्रतिभा अपना रास्ता खुद खोज लेते हैं ।पवन मेरा ही पयार्य है ,पानी मै खूब पीता हूँ और प्रतिभा मुझ में कूट -2 के भरी हुई है।मैने सरकारी कंपनी मे आते ही उक्ति को चरितार्थ किया और कँपनी की युनियन को खोजना प्रारँभ कर दिया ।लोगो ने हमसे हमारा परिचय पूछा ।हमने क्या कहा यह बाद की बात है पर पहले मै हर सफल व्यक्ति के तीन विशिष्ट गुण बताना चाहूंगा----
1-अच्छा वाचक
2-अच्छा स्रोता
3-अच्छा प्रसशंक

अच्छा वाचक :-बात सीधे न कह्कर घुमा फिरा कर कहना चाहिए ।यदि आंग्ल भाषा पर नियंत्रण हो तो सोने पर सुहागा .....क्योकि सुनने वाले 10% ही आपको समझ सकेंगे कि आपने क्या कहा बाकि के 90% आपकी आवाज और भावभंगिमा देखकर एक दूसरे से खुद को ज्यादा बुद्धिमान दिखाने के लिये कहेगे “इटस एक्सीलेंट”
अच्छा स्रोता :बहुत जरूरी है ! क्यूँ ??? जरा नम्बर 3 पढे ।
अच्छा प्रशंसक :-जिन्हे भाषा का कम ज्ञान है या जो अक्सर नकारात्मक प्रवत्ति से घिरे रह्ते है वो मेरे प्रशंसक शब्द को “चापलूस” में बदल देंगे ।परंतु अगर आप प्रगति के इछ्छुक हैं तो आप अपने से ऊपर वाले की जमकर प्रशंसा करिये । स्त्रियों से कहें कि वो बुद्धिमान है और पुरुषों से कहे कि वो लगातार handsome होते जा रहे है।आपके मुख से ऐसे वचन सुनकर वो ठीक उसी प्रकार प्रसन्न होंगे जिस प्रकार रामदेव महाराज अपनी दवा के बारे में,ग्रेग चैपल उंगली दिखाने में ,सिद्धू जी बिना अर्थ की लोकोक्त्ति सुनाने में ;और वित्त मंत्री कीमते बढाने में खुश होते हैं।

अब लोगो ने जैसे ही मेरा परिचय पूछा हमने तपाक से एक शेर जड दिया: बोले
“हम न गुल हैं न फूल है जो महकते जायें
आग की तरह है जिधर जाये दह्कते जायें ॥

इतना कहते ही 2000 रु प्रतिमाह पाने वाले मजदूर संकट्मोचक मुझे ही समझ बैठे ।परन्तु मेरे लिये यह कूटनीति का प्रथम चरण था ।मुझे जार्ज रेमँड की अग्रेजी पुस्तक की दो लाइने आज तक याद हैँ
“कूटनीतिज्ञ एक ऐसा राजनीतिज्ञ है जो स्वयँ को राष्र्ट्र की सेवा में अर्पित कर देता है; जबकि राजनीतिज्ञ एक ऐसा कूटनीतिज्ञ है जो राष्ट्र को अपनी सेवा में अर्पित कर देता है.”

कुल मिलाकर यदि मेरे उपर्युक्त कथन की विवेचना की जाये और समझा जाये तो मेरे लिये राष्ट्र आदि के कोई मायने नहीं है।मै मनुष्यों द्वारा बनाई गई रेखाओं को ठीक उसी प्रकार नही समझ सकता जैसे एक टेक्निकल concept को मैनेजमेंट की कुर्सी पर बैठा इँसान नही समझ सकता ।
खुद को बदलने से मोह्ल्ला बदल जाता है ;मोह्ल्ला बदलने से गाँव;और गाँव बदलने से देश बदल जाता है ;ठीक उसी प्रकार से अपनी प्रगति से मोहल्ले की प्रगति;मोह्ल्ले से गांव और गांव से देश की प्रगति हो जायेगी ।मूल मे अपनी प्रगति अतिआवश्यक है।कुल मिलाकर “स्वकेन्द्रीय सोच “अर्थात स्वार्थी होना ही प्रगति करने का मूल स्तम्भ है।
मजदूर यूनियन में अध्यक्ष पद संभालते ही मैने एक शब्द रटा और उनके दो समर्थक नेताओं के नाम रटे ।शब्द था “समाजवाद “और नेता थे “मार्क्स और लेनिन”।ध्यान रहे भारतीय “लोहिया” ;”गांधी” या “विनोवा “ का नाम लेना ,मतलब जनता कि नजरों मे स्वंय के स्तर को गिराना।जब तक आपकी बातों मे “राविंसन “”मैल्कम स्मिथ “”रिलैरो मैक्सम” या इससे भी अधिक कठिन नाम नही आते ,लोगो के सामने आपके विचारो की कोई औकात नहीं ।एक और विशिष्ट बात वह यह कि आप अपनी बात को कुछ अधिक कलात्मक,विचारपरक प्रदर्शित करना चाह्ते हैं तो आप अपने नाम के आगे “सर” और पीछे “बंशाली”,”चटर्जी “,”दास” “चट्टोपाध्याय “ या फिर “गंगोपाध्याय “ लगाना प्रारंभ कर दें।

एक अच्छे नेता का प्रथम कार्य होता है “किसी अच्छी सी सडक पर जाम लगबाना “ या फिर किसी भिखारी के तन पर ढके एक मात्र वस्त्र को छींनकर उस कपडे का पुतला बनाकर उसे जलाना ।पुतला जितने बडे आदमी का जलायेगे आप भी उतनी ज्यादा प्रसिद्धि पायेंगे।
लेकिन मैने तो प्रसिद्धि पाने का एक अलग ही तरीका अपनाया ।मैने एक मरे हुए अति प्रसिद्ध आदमी का पुतला जलाया ।यह प्रसिद्ध आदमी “गांधी “था ।वैसे भी यह वो बेचारा इँसान था जिसने पूरी जिन्दगी खुद को खूब जलाया और हिन्दुस्तानी जनता देश की सबसे बडी समस्या का उत्तरदायी इसे ही मानती है ।जनता की इसी “मूर्खता” का मैने जमकर फायदा उठाया ।यहाँ एक और शिक्षा देना चाहूँगा ;अगर जिन्दगी में कभी कोई गलती हो जाये तो उसे कभी मत स्वीकारो ;कभी मत कहो कि गलती मेरी या हमारी थी ।
कहना सीखो कि गलती उसकी थी ;या ISI की थी ;पाकिस्तान की थी ,और अगर कोई ना मिले तो “गांधी”की थी।कुल मिलाकर आदर्शवादी गांधी का मैने जमकर फायदा उठाया।
मैने यह सारे मंत्र सीख लिये और अपनी युनियन के साथ बाहर की युनियन कार्य में भी बढ-चढ कर भाग लेना प्रारंभ कर दिया था;गाँधी जी से खुले आम दुश्मनी ने मुझे बहुत प्रसिद्ध कर ही दिया था ।मुझे किसी भी बात का डर भी नही था क्योंकि मेरे दुश्मन “अहिंसक” थे ।
मेरे जबरदस्त विचारों से प्रेरित होकर कुछ महापुरुषों ने मुझे “वर्तमान का सिपाही” की होने की संज्ञा दे डाली;और आगामी लोकसभा में चुनाव लडने का विचार ।मै प्रथमता नैतिकता के आधार पर बोला कि मै देश के इतने बडे भवन में बैठने लायक कहाँ हूँ परंतु मेरे इस कथन को वो सत्य ना मान ले इसलिए साथ ही जोडा कि आप बुद्धिमान है ;जो आप ठीक समझते है वही उचित होगा।वैसे सत्य कहूँ तो उतना मूर्ख राजनीतिज्ञ मैने आज तक नही देखा ;15 वर्षो से सिर्फ पार्टी का स्यंयसेवक बना बैठा था।कोई लाभ का पद मिलते ही उसे ठुकरा देता..........।मै मन ही मन अति प्रसन्न था।
अब मैने जाते ही अपनी कंपनी मे अपने इस्तीफे की कयावत प्रारंभ कर दी;इसके लिये सर्वप्रथम मैने एक बडा घोटाला किया;उददेश्य था आगामी चुनावों के लिए पैसे जुगाडना।ळोगो ने जैसे ही मेरे ऊपर प्रश्न किये मैने घडियाली आसूँ बहाते हुए इस्तीफा दे दिया। युनियन पहले से ही मेरे साथ थी ।कंपनी मे हड्ताल शुरू हो गयी।मै चार दिन बाद प्रेस से मिला और साथियो से काम पर बापस जाने का आह्वान किया ।

लोगों ने मेरी बात मानी पर साथ ही साथ एक नारा भी दिया ;”छछूदंरलाल तुम सँघर्ष करो हम तुम्हारे साथ हैं “मैने भी साथ में कह दिया आपके इस साथ की जरुरत समय आने पडेगी ।
अब चुनावों का समय पास था । साम,दाम,दण्ड भेद की सारी नीतियाँ मैने अपना ली थी।अपने चुनावी अभियान की शुरुआत मैने जुग्घी-झोपडी में राखी सावंत का बहुमुखी न्रत्य करा किया;मै जांनता था कि 90% वोट यहीं से पडेंगे ।वैसे भी मै कला का बहुत
बडा प्रसशंक हूँ।

अंतत: मै चुनाव जीत ही गया ;मेरे साथ मेरे मुहल्ले का रामविलास और बगल वाले मुह्ल्ले का सिबू भी चुनाव जीता था। दोनो निर्दलीय थे इसलिए सबसे पहले इन दोनो को मैने अपनी पार्टी में ले लिया;बैसे इन दोनो का पूर्व मे किसी की भी सरकार में कैबिनेट मंत्री का पद पक्का रह्ता था।अब हम तीन थे “रामविलास,सिब्बु जी;और छ्छूंदरलाल”....

मैने पार्टी का नाम तीनो नामो को जोडते हुए रखा “लाल राम जी”।सयोंग से इस बार त्रिद्लीय संसद बनी ।दो बडे-2 दल बहुमत से दूर थे ,बाकियों को जोड्ने से बहुमत से सिर्फ 3 कम ।मै अपनी value समझ चुका था ।मैने छोटे-2 दलों को दिवास्व्प्न दिखाने शुरु किये और उन्होने देखने ।मैने सभी को मंत्री बनाने का वायदा कर डाला।और संसद में खुद की अध्यक्षता में सबसे बडी पार्टी की लिस्ट राष्ट्र्पति को पकडा दी।
अब शपथ समारोह और हमारे प्रधानमंत्री बनने में दो दिन का अंतर था............॥आगे की सुखद या दुखद घटना अगले अंक मे......................॥