कभी पेंसिल के छिलको को सरसों के तेल में डुबा कर रखा था यह सोचकर कि रबड़ बन जायेगी ।
दीदी के बालों में बांधने वाली रबड़ को पेंसिल के पीछे बांधकर, लिखे हुए को मिटाने की कोशिश की थी यह सोचकर कि लिखा हुआ बिल्कुल साफ हो जायेगा ।
किताबों के पन्नों के बीच में विद्या के पत्तो को भी रखा ,यह सोचकर कि अछ्छे नम्बर आयेंगे ।
कड़ी सर्दियों में ठंडे पानी से नहाकर , प्रात: स्मरण मंत्र बोलकर स्कूल गये । यह सोचकर कि आज गणित के मास्टर साहब को बुखार आ जायेगा ।
पहला पन्ना राम का, अगला पन्ना काम का ....जुलाई में आने वाली नईं कापियों को सुन्दर रखने की कोशिश की ,यह सोचकर कि विद्या देवी है ,खुश होगी ।
पैरामीशियम, अमीबा को तालाब के पानी से इकठ्ठा ,इंक की शीशी में डाला और उसमे हर दिन डाली सड़ी गली चीजें ,यह सोच कर कि कभी तो वो बड़े होंगे ।
कालेज की अगली सीट पर बैठने वाली उस लम्बे बालों वाली लड़्की को सोचकर लिख दी एक कविता ,यह सोचकर कि एक न एक दिन पीछे की सीट पर बैठने वाले उस बुद्दू से वह Impress होगी
कल उसको India के सबसे बेहतर Hospital लेकर गया , यह सोचा था कि वो कुछ और दिन मुझे देखकर मुस्कुरायेगी...........
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5 comments:
"कल उसको India के सबसे बेहतर Hospital लेकर गया , यह सोचा था कि वो कुछ और दिन
मुझे देखकर मुस्कुरायेगी.........."
speechless.................
यह सोचकर कि एक न एक दिन पीछे की सीट पर बैठने वाले उस बुद्दू से वह Impress होगी
ग़लतफ़हमियाँ उन दिनों खुश्फेहमियाँ हुआ करती थीं, आज गलत लगती हैं, कल फिर दिल पर फाह़ा रखेंगीं |
इन यादों को संजो कर रखियेगा |
yek kya koi tragedy hai pawan..ya koi joke.. i am serious..
Himanshu Sir ....ye Jindgi hai jise kam se kam abhi tak mai bhi nahi samjh paya ki trgedy hai ya joke.
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