Tuesday, October 20, 2009

माँ ....तुझमे और उसमे बहुत अंतर था ।

माँ !
तुझमे और उसमे
बहुत अंतर था ॥


तुम्हारी सूखी हुई ,
दुबली हडिइया भी
कभी चुभी नहीं मुझे ,
बल्कि मर्मस्पर्शी
प्रेम में लिपटी हुई लगी ॥



तुम्हारा मुझे
वो नंगे पांव
धूप मे खड़ा कर देना
कभी रूला नहीं पाया मुझे
क्योंकि
उसके बाद
लिपटा लेती थी तुम मुझको गले से ॥



और तुम्हारा
रोज रात को पापा से
झगड़ जाना
मेरे वर्तमान और भविष्य के लिए।
मुझे सजाता रहा
और इंसान बनाता रहा ।



लेकिन वो
फूल से दिखनी वाली
जो खुद तू मेरे लिए
लेकर आई
चुभो गई अपने सारे
अस्त्र ......



और अब मै असहाय
रक्त से लथ-पथ
मरूभूमि में पड़ा
ढूंढ्ता हूँ फिर तुझे
ओ माँ ॥