माटी म्हारे देश की
मोहे खूब ही भावे
पानी-रोटी ,सत्तू
खुशबू पास बुलावे
अमरूदों का भीग़ा ठेला
पान-पुरी की चाट
पंजाबी ढावों के बाहर
पड़ी हुई कुछ खाट
बूढी दादी,नानी,अम्मा
करें जवानी याद
नये खिलौनों से खेल-खेल कर
दादा करते बात
और गली की उधम चौकड़ी
गरम समोसों की शाम
“फुरसतगंज” के चौराहों पर
उड़े पतंगे ले आस
और वहीं उसी किनारे
ले हाथों मे हाथ
सजकर बैठे गुड्डा-ग़ुडिया
कर तिरसठ को पार ॥
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
1 comment:
Vaah vaah.
Post a Comment