Sunday, November 06, 2011

गीले फूल ...सूखी पंखुड़ी
















आज तुम्हारे दिये हुए
गुलाब के फूल
कुछ रोज्‌ के बाद..
जब किताबों से निकाले
तो फिर से गीले तो हुए
पर खिल न सके !!

एक पंखुड़ी...
जिसको
मैंने बेबस सा समझा था
और जिसने आपको
बाकी बचे
फूल से जुदा कर लिया ....
अकेली सूख गयी .....
और आजा‌द हो उड़ गई
तुम्हारे नाम के चंगुल से !!

अक्सर यूंही
कई पंखुड़ियों को होता है
अपने सूखने का इन्तजार ....!!

Saturday, April 16, 2011

मोहे कांकर पाथर कर दीजो

मोहे कांकर पाथर कर दीजो.....
तू पंछी मत बनईयो
मोहे गहरा सागर कर दीनो
तू लहरे मत दिखईयो ...

मोहे सूरज आग बना दीजो
तू चंदा मत बनईयो
मोहे सूखी रोटी जलने दीजो
तू माखन मत चुपरैयो ॥

मोहे भटकन देना दर दर पर..
कोई पाहन मत ठहरईयो
भ्रमर !! तिस्कार दियो तू नैनन से
मोहे प्रेम रंग न छलियो॥