Thursday, March 04, 2010

कुछ गलतफहमियां

कभी पेंसिल के छिलको को सरसों के तेल में डुबा कर रखा था यह सोचकर कि रबड़ बन जायेगी ।

दीदी के बालों में बांधने वाली रबड़ को पेंसिल के पीछे बांधकर, लिखे हुए को मिटाने की कोशिश की थी यह सोचकर कि लिखा हुआ बिल्कुल साफ हो जायेगा ।

किताबों के पन्नों के बीच में विद्या के पत्तो को भी रखा ,यह सोचकर कि अछ्छे नम्बर आयेंगे ।

कड़ी सर्दियों में ठंडे पानी से नहाकर , प्रात: स्मरण मंत्र बोलकर स्कूल गये । यह सोचकर कि आज गणित के मास्टर साहब को बुखार आ जायेगा ।

पहला पन्ना राम का, अगला पन्ना काम का ....जुलाई में आने वाली नईं कापियों को सुन्दर रखने की कोशिश की ,यह सोचकर कि विद्या देवी है ,खुश होगी ।


पैरामीशियम, अमीबा को तालाब के पानी से इकठ्ठा ,इंक की शीशी में डाला और उसमे हर दिन डाली सड़ी गली चीजें ,यह सोच कर कि कभी तो वो बड़े होंगे ।


कालेज की अगली सीट पर बैठने वाली उस लम्बे बालों वाली लड़्की को सोचकर लिख दी एक कविता ,यह सोचकर कि एक न एक दिन पीछे की सीट पर बैठने वाले उस बुद्दू से वह Impress होगी

कल उसको India के सबसे बेहतर Hospital लेकर गया , यह सोचा था कि वो कुछ और दिन मुझे देखकर मुस्कुरायेगी...........