Sunday, January 31, 2010

दौडौ ! पीठ पर अपने अपने घरों का बोझ लेकर!!

1.

पिछला हफ्ता बहुत ही अलग था , 25 जनवरी को मुझे पता चला कि ग्रहण की कुछ दशाओं के कारण यह समय मेष राशि के जातकों के लिए ठीक नहीं है ।

26 जनवरी की सुबह ने मुझे भी मोहम्मद रफी और महेंद्र कपूर (क्रमश: हिन्दू,मुस्लिम) के गानों एवं “मिले सुर मेरा तुम्हारा” जैसी धुन ने देश-भक्ति की भावना से ओत-प्रोत कर दिया और मै एक बार फिर भारतीय होने पर गर्व करने ही वाला था कि बाल ठाकरे साहब ने मुझे पुनर्विचार करने पर मजबूर कर दिया । मुझे अभी तक यह समझ नहीं आ पा रहा कि कहीं उन्हे “उत्तर”- North शब्द से ही तो चिढ नहीं है और पकिस्तान तथा उत्तर भारतीय दोनो को इसलिए एक साथ “सामना” के द्वारा लपेटे में ले रहें हैं । उम्मीद है कि मै अभी तक इतना महत्वपूर्ण नहीं हुआ कि शिवसेना मेरे इस वक्तव्य से क्रोधित होकर मेरा पुतला फूंके ।अगर वह ऐसा करने को उत्सुक हैं तो मेरा शरीर किसी भी पुतले से न केवल बेहतर जल सकता है बल्कि मीडिया प्रचार के लिए भी बेहतर है ।


27 जनवरी से मुझे माइक्रोसाफ्ट की एक ट्रेनिंग में भाग लेना था । दिल्ली में कालिदीं कुंज और अपोलो हास्पिटल के सामने कुछ रेल की पटरियां है जो दिल्ली को आगरा ,मुंबई जैसे शहरों से जोड़्ती है।


एक और चित्र यह है कि यही रेळ की पटरियां इंसान को उसकी भूख मिटाने के साधन से विभाजित करती है। रेल की पटरियों के इस ओर मदनपुन खादर/जसोला विहार/कालिन्दी कुंज जैसी जगह है जहां निम्नवर्गीय ,मध्यमवर्गीय भारत बसता है जो हर रोज पटरियों के उस पार ओखला इंडस्ट्रियल एरिया में , उच्चवर्ग द्वारा स्थापित व्यवसायों में अपनी आजीविका ढूढने के लिए तेजी से आती रेलगाडियों के आगे दौड़ लगाता है ।



मैने नये होने के कारण एक को टोक दिया “ अरे अंकल ! मरोगे क्या? तुम्हे नहीं पता “राजधानी किस रफ्तार से आती है” ।

अधेड़ तपाक से बोला –

-किस “राजधानी” की रफ्तार से बचना है? ट्रेन वाली या शहर वाली ?
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2.

टाटा की लो-फ्लोर बसों में पहली बार बैठा , यह बाहर से देखने में काफी बेहतरीन है। उ.प्र सरकार नें नीले रंग से इसको अलग रखा इसके लिए मै बहनजी का शुक्रिया अदा करता हूँ । यधपि मुझे हर भारतीय की तरह नीले रंग से प्यार है लेकिन इसकी अधिकता इसके महत्व को कम करती जा रही थी । नोएडा के सेक्टर-37 से आप लगभग हर इलाके की बस ले सकते हैं ।

थोड़ा इंतजार के बाद हल्के हरे रंग की डिजिटल सिग्नल युक्त बस आ गई । कुछ छड़ के लिए तो लगा कि दरवाजा खुलते ही एक खूबसूरत सी बस-होस्टेज़ स्कार्फ और मिनी स्कर्ट में स्वागत करेगी , लेकिन यथार्थ कुछ ही समय में सामने आ गया।

ओ अकबर !!! कां कु जाबेगा ???? 37-38 साल के कंडक्टर ने हरियाणवी भाषा के सबसे सभ्य शब्दों का प्रयोग करते हुए पूछा ।

जी मुझे सरिता बिहार तक जाना है !

तो खुद से चढेगा या बाप्पू आबेगा चढ़ाने ........??

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3.


मुर्गे जब बाजार में बिकने जाते हैं तो मुर्गी-पालन करने वाला इंसान उन्हे एक जालीदार टोकरी में बंद करता है ।उस छोटी सी टोकरी में मुर्गे , एक दूसरे से लगभग चिपके हुए , अंश भर की जगह न होने के कारण सिर तक न घुमा सकने वाले वह सब अत्यंत शांत होते हैं । शायद उनको अपनी मौत का अंदाजा होता हो ।

सुबह-शाम पब्लिक ट्रांसपोर्ट से प्राइवेट कम्पनियों में काम पर आने जाने वाले लोगों में भी न जाने क्यूं ऐसी ही “निशब्ददता” पाने लगा हूँ ।


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4.


पहले
सिगरेट पिलाई
कश दिया ,
फिर
कुछ रगींन सा .....

फिर..
खूब सारा शोर मचा दिया कानों में

मुझे भी मजा आने लगा था ।
मेरे घर के कोने पर
अप्सरायें जो नाचने लगी थी ।

क्या पता था कि खोखला हो रहा हूँ ।।

मेरे जैसे
खूब तैयार किए
फिर जब अस्थमा, टी.बी, से लबरेज हुआ
तब कहा
अब “दौडौ ! पीठ पर अपने अपने घरों का बोझ लेकर !

वो तो एक माँ है
जो अभी भी,
अलमुनियम के टिफ़िन में
बूढी हुई सब्जियाँ
परोस देती है और
कहती है
बेटा ठीक से खाना !!!

Sunday, January 17, 2010

राजनीतिशास्त्र और सूचना प्रौद्दोगिकी: (गूगल-चीन विवाद)

विश्व के राजनीतिक पटल पर प्रौधोगिकी ,वह भी विशेष रूप से सूचना प्रौधोगिकी इतना विशिष्ट प्रभाव छोड़ेगी यह शायद समकालीन राजनीतिक चिंतको ने भी नहीं सोचा होगा । 1917 की रूस की क्रांति के पश्चान पूरा विश्व 2 भागों में विभाजित हो गया था ,एक ओर विश्व के उदारवादी चिंतक लोकतंत्र की अवधारणा और व्यक्तिगत स्वतंत्र्ता का समर्थन करते हुए बाजार की मुक्त स्पर्धा का समर्थन करते गये और उसका तत्कालीन प्रभाव वैश्वीकरण तथा सम्पूर्ण विश्व एक है,और सभी सकारात्मक रूप से स्वतंत्र है ... इस अवधारणा के रूप में सामने आया ।


वहीं दूसरी ओर मार्क्स के समर्थक साम्यवाद की अवस्था में ही लोकतंत्र की धारणा का समर्थन करते हैं । उनका कहना है कि वास्तविक लोकतंत्र तभी मिलता है जब साम्यवाद होगा इसके बिना लोकतंत्र छ्लावा मात्र है । यहां यह बताना आवश्यक है कि साम्यवस्था मार्क्स का स्वप्न मात्र है जिसमे समाज का हर व्यक्ति क्षमता के अनुसार कार्य करता है और आवश्यक्ता के अनुरूप पाता है। साम्यवस्था से ठीक पहले की अवस्था समाजवादी अवस्था या सर्वहारा की तानाशाही के नाम से जानी जाते है जिसमें राजा /सरकार के ही हाथों में राज्य के सभी संशाधन होते है। विचारधारा के समर्थकों का कहना है कि जनता इतनी सक्षम नहीं है कि वह दूरगामी साम्यवाद को समझ सके। यही कारण है कि कम्युनिष्ट विचारक व्यक्तिगत स्वतंत्रता को महत्व नहीं देते । वर्तमान में “चीन” प्रशासन शिक्षा, समाचार पत्र , विचारों की अभिव्यक्ति,आदि पर नियंत्रण रखता है परंतु सूचना प्रौधोगिकी के वर्तमान उत्कर्ष यथा गूगल,ब्लाग , Orkut, विकीपीडिया आदि धीरे धीरे चीन के कम्युनिष्ट स्वरूप को ही नही बल्कि वहां की संस्कृति को भी चुनौती देते जा रहे हैं ।


चीन में कार्यरत विश्व मानव अधिकार आयोग के कार्यकर्ताओं के ई-मेल लगातार हैक किये जा रहे हैं । इंटरनेट सर्च कंपनी गूगल ने कहा है कि वो चीन में अपना कामकाज समेट सकती है क्योंकि चीनी मानवाधिकार कार्यकर्ताओं के ईमेल कथित तौर पर हैक किये जा रहे हैं। व्यक्तिगत इंटरनेट Accounts को हैक कर प्राइवेसी (Privacy) को समाप्त किया जा चुका है । गूगल के चीनी भाषा के संस्करण का सर्च क्रम (Order) चीनी सरकार के मौन समर्थन में बदला जा चुका है ।

अमेरिकी इंटरनेट कंपनी गूगल के चीन सरकार के साथ चल रहे गंभीर विवाद से ओबामा प्रशासन ने चीन को औपचारिक रूप से डिमार्शे (राजनयिक नोट) सौंपने का निर्ण्य लिया । अमेरिकी प्रशासन का मानना है कि चीन को इंटरनेट की आजादी पर अपने विचारों को स्पष्ट करने की जरूरत है। दुनिया के सबसे बड़े सर्च इंजन गूगल ने चीन पर वेबसाइट पर अभिव्यक्ति की आजादी (Freedom of Expression) को छीनने की कोशिशें करने का आरोप लगाया है और इस कारण चीन से अपना कारोबार समेटने की वॉर्निंग दी है।

वहीं दूसरी ओर चीन ने 2009 में गूगल पर कई आरोप लगाये जिसमें अश्लील साहित्य का प्रसार भी शामिल है । यह कुछ हद तक एक सही तथ्य भी है । इंटरनेट कई देशों की वर्तमान संस्कृति के लिए लगाता एक चुनौती बनता जा रहा है जिसमे गूगल सबसे महत्वपूर्ण है । चीन “संस्कृति के बचाब” का नाम लेकर समाजवाद बचाने के लिए व्यक्तिगत स्वतंत्रता की तिलांजली देना चाहता है, वहीं अमेरिका (वैश्वीकरण) प्रचारित कंपनिया अभिव्यक्ति की स्वतंत्र्ता के नाम पर बडे बाजार की ओर देख रही हैं ।

हम कहां है ?

भारत स्वतंत्रता के समय से ही अनु-19 के द्वारा अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की आजादी देता है । इसलिए वर्तमान में हमारे राजनैतिक विचारो के अनुसार भारत और वर्तमान विश्व की कंपनिया टकराव की स्थिति में नहीं है । यधपि आपातकाल तथा राष्ट्र हित में यह आजादी समाप्त कर दी जाते है परंतु इंटरनेट के युग में ऐसी स्थिति में कैसे निपटा जायेगा यह अभी भी एक मूक प्रश्न है ।


यहाँ यह उल्लेख भी आवश्यक है हमारे देश की संस्कृति को प्रदान की गई चुनौतियों का सामना अभी तक परिवार नामक संस्था बखूबी निभा रही है । राज्य या सरकार के स्थान पर माता-पिता तथा नैतिक शिक्षा द्वारा अच्छे ,बुरे की सीख से समाज अग्रसर हो रहा है । इस प्रकार भारत राजनैतिक और सामाजिक रूप से ही नहीं बल्कि भूमंडलीकरण के स्वरूप के कारण आर्थिक शक्ति बनता जा रहा है ।