Thursday, September 13, 2012

कोकराझार


जब मै

छोटा बच्चा था

किरायेदार अब्दुल के बेटे

आति‌फ के साथ ताश के पत्तों का

मकान बनाया करता था ।



और हम दोनो ही उसके

बिखर कर न गिरने की

प्राथेना करते थे

वो अपने अल्लाह से

और मै अपने राम से ।



पत्तों के मकाँ का गिरना तो

समय के साथ तय था

फिर भी हम दोनो में ही

अजीब सी प्रतिस्पर्धा हो जाती

कि किसके भगवान ने

किसकी प्रार्थना ज्यादा देर तक सुनी !



हम लड़ पडते अपने आप को

श्रेष्ठ साबित करने के लिए

और फिर कभी घंटो

कभी दिनों

और कभी महीनों बात नहीं करते ।



ताश के पत्ते पड़े रहते

वहीं

उसी खाली पड़ी मेज पर

पर न मै

और ना ही वो कभी कोशिश करते

अकेले मकान बनाने की ।



फिर कुछ दिनों बाद

या तो ईद आ जाती या होली

और साथ में आ जाती

या तो उसकी सिवईयाँ

या मेरी गुजिया

और फिर हम भूल जाते

पुरानी राम या अल्लाह की लड़ाई

और हंसते खेलते

जुट जाते

ताश के मकान बनाने में ।



अब बड़े होने पर

कोकराझार से

अब्दुल की खबरें

आती है ..

सुना कि फिर दंगे हुए

और मै अकेला

कटोरी में लिए

ईद की सिवईंया

और होली की गुजिया

आज भी इंतजार करता हूँ

किरायेदार अब्दुल के बेटे

आतिफ का ॥