Thursday, January 26, 2012

नन्ही हथेलियाँ

भीड़

दोस्तो ! अजीब सी भीड़

लोग ही लोग...

संकरी सी गलियों में

सिर तक भरे हुए लोग ..


कुछ पान की दुकान पर

तो कुछ चर्चगेट प्लेटफार्म पर

कुछ ....ठीक धारावी वाले मोड़ पर

अनायास से चलते जा रहे...


कुछ बस सेल्टर के बाहर

बारिश की बूंदो में

टकटकी लगाकर भविष्य देखते

तो कुछ मौन में ही गुम ..

अपने बीते हुए कल को याद करते ..


कुछ ऐसी भीड़ भी है

जो रोज खोजती खुद को

अखबारों के पन्नों में

लकी ड्रा के विज्ञापनों में


तो कुछ लोग छोटे से

कागज पर ..

रोज करते बड़ी बड़ी गुणा-भाग

बच्ची की शादी की

बेटे की पढाई की

या माँ की दवाई की

तो कुछ

शब्दश: करते प्रार्थना

अंजाने से भगवान की ....


लेकिन फिर भी आजाद है यह

आम भीड़ !!


दोस्तों

इसी भीड़ में नन्ही हथेलियां है

कुछ कोमल से फूल बेचती नन्ही हथेलियाँ

कुछ कटोरा लिए हथेलियाँ

कुछ जूते पालिस करती नन्ही हथेलियाँ

कुछ मासूमियत से

ढाबे की झूठन मांजती हथेलियां

कुछ पतंग उड़ाने की उम्र में

पतंग बनाती नन्ही हथेलियां

कुछ रोज “एजुकेट इंडिया” के विज्ञापन

बांटती अनपढ मासूम हथेलिंया ....


कुछ का भविष्य प्लास्टिक की बोतलों में

कुछ का रद्दी चुनने में

कुछ का चंद चौराहों के ठेलों पर

कुछ का लगातार चलती जा रही सिलाई मशीन पर

कुछ का चमकते जूतों पर

कुछ का घरों की दीवारों पर

और इन्ही में कुछ लगातार

इंतजार करती हैं राष्ट्रीय पर्वों का

जब प्लास्टिक के तिंरगो की

कीमत मिलती है

और इन हथेलियों की जिंदगी

चलती हैं


“आजादी” शब्द का अर्थ

अनकहा-अनसुनी सी हो जाती हैं

जब भीड़ के हिस्से में

ऐसी नन्ही हथेलियाँ मिल जाती हैं ॥



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