पहले मैं जब सुबह उठता था
सूरज की किरणों
को पानी से धोने का
प्रयास देखता था।
हरी कोपलों पर
खुद को समेंटें हुए ओस की बूंदे
देखता था ॥
नई-2 कोपलों को
पीले हुए पत्तों के सामने
अठखेलियाँ करते हुए भी देखा ॥
समीर, जो ठंडे हुए ..
पर्वतों से आकर मेरे कानों में
कुछ फुसफुसाती थी ॥
और कुछ रंगबिरंगे फूलो पर
अदभुत सी तितलियों
को ठहरते देखा ॥
तुमको अचरज होगा ,कि मेरे
घर के आंगन में कभी मोर
कभी कोयल तो कभी सफेद
बगुले आते थे
सूखे पडे धान को चुनने ॥
और मै बालहठ में
उन्हे पकडने की नाकाम कोशिश करता ॥
अब,
न आंगन है ,न तितली हैं
न कोपल हैं ,न पीले हरे पत्ते
बस उनकी कुछ तस्वीरें,
जो बाजार में मिलती हैं
मैने अपने घर की दीवार पर
सजाने को लगा रखी हैं ॥
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1 comment:
waah wah.. Mast
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