Friday, March 09, 2007

एक उदास सुबह

आसमां के बादल के पीछे ;
परियों के उस झुरमुट के बीच में
खडी एक प्यारी सी परी !!!!

घटा से बाल हैं जिसके;
दमक बिजली की जैसी है
कमल के फूल सी रंगत ;
हंसी मोती के जैसी है !!

मासूमियत ऐसी कि जैसे;
नन्ही गिलहरी हो;
बातें ऐसे जैसे फिजा ;
उससे ही रौनक हो ॥

बहुत देखा था बचपन में
पतंग को बादलों में छिपते-छिपाते।
और जब हाथों की डोर टूट जाती थी;
एक “उदासी”संग मेरे छ्त पे
साथ रह जाती थी।

आज फिर “परी” मेरी
वही अठखेलियां करती !
आती है और फिर उड् जाती है
सपनो से मेरे!!!

फिर आंख खुलती है
हकीकत पास आती है
हर सुबह यूहीं
इक उदासी साथ जाती है !!!!

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