माँ !
तुझमे और उसमे
बहुत अंतर था ॥
तुम्हारी सूखी हुई ,
दुबली हडिइया भी
कभी चुभी नहीं मुझे ,
बल्कि मर्मस्पर्शी
प्रेम में लिपटी हुई लगी ॥
तुम्हारा मुझे
वो नंगे पांव
धूप मे खड़ा कर देना
कभी रूला नहीं पाया मुझे
क्योंकि
उसके बाद
लिपटा लेती थी तुम मुझको गले से ॥
और तुम्हारा
रोज रात को पापा से
झगड़ जाना
मेरे वर्तमान और भविष्य के लिए।
मुझे सजाता रहा
और इंसान बनाता रहा ।
लेकिन वो
फूल से दिखनी वाली
जो खुद तू मेरे लिए
लेकर आई
चुभो गई अपने सारे
अस्त्र ......
और अब मै असहाय
रक्त से लथ-पथ
मरूभूमि में पड़ा
ढूंढ्ता हूँ फिर तुझे
ओ माँ ॥
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4 comments:
माँ !
तुझमे और उसमे
बहुत अंतर था ॥
ये आपकी आत्माभिव्यक्ति की अकांक्षा को प्रदर्शित करता है।
Naa aksharon ki samajh thi, naa sabdon ka gyaan tha,
Maa tujhko maa keh paa naa, phir bhi kitnaa aasaan tha
बहुत खूब पवन।
well done mama ji...!!
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