Saturday, July 04, 2009

बस यूंही अनायास .......

पहले मैं जब सुबह उठता था

सूरज की किरणों

को पानी से धोने का

प्रयास देखता था।



हरी कोपलों पर

खुद को समेंटें हुए ओस की बूंदे

देखता था ॥



नई-2 कोपलों को

पीले हुए पत्तों के सामने

अठखेलियाँ करते हुए भी देखा ॥



समीर, जो ठंडे हुए ..

पर्वतों से आकर मेरे कानों में

कुछ फुसफुसाती थी ॥



और कुछ रंगबिरंगे फूलो पर

अदभुत सी तितलियों

को ठहरते देखा ॥



तुमको अचरज होगा ,कि मेरे

घर के आंगन में कभी मोर

कभी कोयल तो कभी सफेद

बगुले आते थे

सूखे पडे धान को चुनने ॥


और मै बालहठ में

उन्हे पकडने की नाकाम कोशिश करता ॥


अब,

न आंगन है ,न तितली हैं

न कोपल हैं ,न पीले हरे पत्ते

बस उनकी कुछ तस्वीरें,

जो बाजार में मिलती हैं

मैने अपने घर की दीवार पर

सजाने को लगा रखी हैं ॥

1 comment:

Kalash said...

waah wah.. Mast