पिछला हफ्ता बहुत ही अलग था , 25 जनवरी को मुझे पता चला कि ग्रहण की कुछ दशाओं के कारण यह समय मेष राशि के जातकों के लिए ठीक नहीं है ।
26 जनवरी की सुबह ने मुझे भी मोहम्मद रफी और महेंद्र कपूर (क्रमश: हिन्दू,मुस्लिम) के गानों एवं “मिले सुर मेरा तुम्हारा” जैसी धुन ने देश-भक्ति की भावना से ओत-प्रोत कर दिया और मै एक बार फिर भारतीय होने पर गर्व करने ही वाला था कि बाल ठाकरे साहब ने मुझे पुनर्विचार करने पर मजबूर कर दिया । मुझे अभी तक यह समझ नहीं आ पा रहा कि कहीं उन्हे “उत्तर”- North शब्द से ही तो चिढ नहीं है और पकिस्तान तथा उत्तर भारतीय दोनो को इसलिए एक साथ “सामना” के द्वारा लपेटे में ले रहें हैं । उम्मीद है कि मै अभी तक इतना महत्वपूर्ण नहीं हुआ कि शिवसेना मेरे इस वक्तव्य से क्रोधित होकर मेरा पुतला फूंके ।अगर वह ऐसा करने को उत्सुक हैं तो मेरा शरीर किसी भी पुतले से न केवल बेहतर जल सकता है बल्कि मीडिया प्रचार के लिए भी बेहतर है ।
26 जनवरी की सुबह ने मुझे भी मोहम्मद रफी और महेंद्र कपूर (क्रमश: हिन्दू,मुस्लिम) के गानों एवं “मिले सुर मेरा तुम्हारा” जैसी धुन ने देश-भक्ति की भावना से ओत-प्रोत कर दिया और मै एक बार फिर भारतीय होने पर गर्व करने ही वाला था कि बाल ठाकरे साहब ने मुझे पुनर्विचार करने पर मजबूर कर दिया । मुझे अभी तक यह समझ नहीं आ पा रहा कि कहीं उन्हे “उत्तर”- North शब्द से ही तो चिढ नहीं है और पकिस्तान तथा उत्तर भारतीय दोनो को इसलिए एक साथ “सामना” के द्वारा लपेटे में ले रहें हैं । उम्मीद है कि मै अभी तक इतना महत्वपूर्ण नहीं हुआ कि शिवसेना मेरे इस वक्तव्य से क्रोधित होकर मेरा पुतला फूंके ।अगर वह ऐसा करने को उत्सुक हैं तो मेरा शरीर किसी भी पुतले से न केवल बेहतर जल सकता है बल्कि मीडिया प्रचार के लिए भी बेहतर है ।
27 जनवरी से मुझे माइक्रोसाफ्ट की एक ट्रेनिंग में भाग लेना था । दिल्ली में कालिदीं कुंज और अपोलो हास्पिटल के सामने कुछ रेल की पटरियां है जो दिल्ली को आगरा ,मुंबई जैसे शहरों से जोड़्ती है।
एक और चित्र यह है कि यही रेळ की पटरियां इंसान को उसकी भूख मिटाने के साधन से विभाजित करती है। रेल की पटरियों के इस ओर मदनपुन खादर/जसोला विहार/कालिन्दी कुंज जैसी जगह है जहां निम्नवर्गीय ,मध्यमवर्गीय भारत बसता है जो हर रोज पटरियों के उस पार ओखला इंडस्ट्रियल एरिया में , उच्चवर्ग द्वारा स्थापित व्यवसायों में अपनी आजीविका ढूढने के लिए तेजी से आती रेलगाडियों के आगे दौड़ लगाता है ।
मैने नये होने के कारण एक को टोक दिया “ अरे अंकल ! मरोगे क्या? तुम्हे नहीं पता “राजधानी किस रफ्तार से आती है” ।
अधेड़ तपाक से बोला –
-किस “राजधानी” की रफ्तार से बचना है? ट्रेन वाली या शहर वाली ?
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2.
टाटा की लो-फ्लोर बसों में पहली बार बैठा , यह बाहर से देखने में काफी बेहतरीन है। उ.प्र सरकार नें नीले रंग से इसको अलग रखा इसके लिए मै बहनजी का शुक्रिया अदा करता हूँ । यधपि मुझे हर भारतीय की तरह नीले रंग से प्यार है लेकिन इसकी अधिकता इसके महत्व को कम करती जा रही थी । नोएडा के सेक्टर-37 से आप लगभग हर इलाके की बस ले सकते हैं ।
2.
टाटा की लो-फ्लोर बसों में पहली बार बैठा , यह बाहर से देखने में काफी बेहतरीन है। उ.प्र सरकार नें नीले रंग से इसको अलग रखा इसके लिए मै बहनजी का शुक्रिया अदा करता हूँ । यधपि मुझे हर भारतीय की तरह नीले रंग से प्यार है लेकिन इसकी अधिकता इसके महत्व को कम करती जा रही थी । नोएडा के सेक्टर-37 से आप लगभग हर इलाके की बस ले सकते हैं ।
थोड़ा इंतजार के बाद हल्के हरे रंग की डिजिटल सिग्नल युक्त बस आ गई । कुछ छड़ के लिए तो लगा कि दरवाजा खुलते ही एक खूबसूरत सी बस-होस्टेज़ स्कार्फ और मिनी स्कर्ट में स्वागत करेगी , लेकिन यथार्थ कुछ ही समय में सामने आ गया।
ओ अकबर !!! कां कु जाबेगा ???? 37-38 साल के कंडक्टर ने हरियाणवी भाषा के सबसे सभ्य शब्दों का प्रयोग करते हुए पूछा ।
जी मुझे सरिता बिहार तक जाना है !
तो खुद से चढेगा या बाप्पू आबेगा चढ़ाने ........??
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3.
मुर्गे जब बाजार में बिकने जाते हैं तो मुर्गी-पालन करने वाला इंसान उन्हे एक जालीदार टोकरी में बंद करता है ।उस छोटी सी टोकरी में मुर्गे , एक दूसरे से लगभग चिपके हुए , अंश भर की जगह न होने के कारण सिर तक न घुमा सकने वाले वह सब अत्यंत शांत होते हैं । शायद उनको अपनी मौत का अंदाजा होता हो ।
मुर्गे जब बाजार में बिकने जाते हैं तो मुर्गी-पालन करने वाला इंसान उन्हे एक जालीदार टोकरी में बंद करता है ।उस छोटी सी टोकरी में मुर्गे , एक दूसरे से लगभग चिपके हुए , अंश भर की जगह न होने के कारण सिर तक न घुमा सकने वाले वह सब अत्यंत शांत होते हैं । शायद उनको अपनी मौत का अंदाजा होता हो ।
सुबह-शाम पब्लिक ट्रांसपोर्ट से प्राइवेट कम्पनियों में काम पर आने जाने वाले लोगों में भी न जाने क्यूं ऐसी ही “निशब्ददता” पाने लगा हूँ ।
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4.
पहले
सिगरेट पिलाई
कश दिया ,
पहले
सिगरेट पिलाई
कश दिया ,
फिर
कुछ रगींन सा .....
कुछ रगींन सा .....
फिर..
खूब सारा शोर मचा दिया कानों में
मुझे भी मजा आने लगा था ।
मेरे घर के कोने पर
अप्सरायें जो नाचने लगी थी ।
क्या पता था कि खोखला हो रहा हूँ ।।
मेरे जैसे
खूब तैयार किए
फिर जब अस्थमा, टी.बी, से लबरेज हुआ
तब कहा
अब “दौडौ ! पीठ पर अपने अपने घरों का बोझ लेकर !
वो तो एक माँ है
जो अभी भी,
अलमुनियम के टिफ़िन में
बूढी हुई सब्जियाँ
परोस देती है और
कहती है
बेटा ठीक से खाना !!!
10 comments:
Wah Pawan waah.. bahut badhiya... bahut dino baad "tumhare wala" padhne ko mila.. sukriya...
mast
tum to uttam se uttamtar aur uttamtam hote ja rahe ho :)
nice one ..... rewardable !!!
dhanya ho kaviraj.
सभी पाठकों को मुझे झेलने के लिए धन्यवाद .....
Badut achchhe neta ji... part-2 me hariyanwi bhasha ke sabse sabhya shabdo par mein pet pakad kar hansaa... part 3 ki sachchaai sachmuch dil ko chhoo gayi... Saadhuwaad!:)
वो तो एक माँ है
जो अभी भी,
अलमुनियम के टिफ़िन में
बूढी हुई सब्जियाँ
परोस देती है और
कहती है
बेटा ठीक से खाना !!!
bahut badhiya sir :))))))
This is the first time I came across your blog. Felt compelled to comment on this post. Amazing.
maja aa gaya padh kar
rahul singh
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